रविवार, 6 अगस्त 2017

इतिहास --मेवाड़ के शासक अल्लट से रावल समरसिंह

* मेवाड़ का इतिहास *
भाग - 2

बप्पा रावल से रावल रतनसिंह के बीच में 32 शासक हुए, जिनमें से कुछ इस तरह हैं -

"अल्लट"

* 951 ई. में मेवाड़ के शासक बने

* अल्लट ने आहड़ को राजधानी बनाई व यहाँ वराह मन्दिर का निर्माण करवाया

* अल्लट ने हूण राजकुमारी हरियादेवी से विवाह किया | ये मेवाड़ के पहले शासक थे, जिन्होंने हूण राजकुमारी से विवाह किया |

* अल्लट ने मेवाड़ में सबसे पहले नौकरशाही का गठन किया

* 971 ई. में अल्लट का देहान्त हुआ

"शक्तिकुमार"

* 977 ई. में मेवाड़ के शासक बने

* मालवा के परमार राजा मुंज ने शक्तिकुमार को पराजित कर चित्तौड़ पर अधिकार किया

* मेवाड़ वालों ने कई साल बाद फिर से चित्तौड़ पर अधिकार किया

"सामन्त सिंह"

* 1172 ई. में मेवाड़ के शासक बने

* ये नाडौल के चौहान राजा कीर्तिपाल से पराजित हुए

* सामन्त सिंह ने बागड़ में राज्य स्थापित किया

"कुमार सिंह"

* ये सामन्त सिंह के भाई थे

* 1179 ई. में इन्होंने चौहान राजा कीर्तिपाल को पराजित कर मेवाड़ पर अधिकार किया

"रावल जैत्रसिंह"

1213 ई.

* रावल जैत्रसिंह मेवाड़ के शासक बने

* रावल जैत्रसिंह ने अपने जीवनकाल में दिल्ली के 6 सुल्तानों का शासन देखा व 2 को पराजित किया

* रावल जैत्रसिंह ने दिल्ली के शासक नासिरुद्दीन को पराजित किया

1222 ई.

* दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने नागदा पर आक्रमण किया

इसके आक्रमण 7 वर्षों तक (1229 ई. तक) लगातार जारी रहे व इसने नागदा को नष्ट कर दिया

1227 ई.

* भूताला का युद्ध -

ये युद्ध रावल जैत्रसिंह व इल्तुतमिश के बीच गोगुन्दा के पास हुआ

तलारक्ष योगराज के पुत्र पमराज नागदा नगर नष्ट होने के समय भूताला के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए

रावल जैत्रसिंह पराजित हुए

1229 ई.

* नागदा पर इल्तुतमिश का अन्तिम हमला

1234 ई.

* दोनों सेनाओं के बीच फिर युद्ध हुआ, पर इस बार रावल जैत्रसिंह ने इल्तुतमिश को पराजित किया

1236 ई.

* बीमारी के चलते इल्तुतमिश की मृत्यु हुई और उसकी पुत्री रज़िया सुल्तान दिल्ली के तख्त पर बैठी

1237 ई.

* रावल जैत्रसिंह ने सुल्तान बलबन को पराजित किया

(ये बात कुछ ख्यातों में गलत दर्ज कर ली गई, क्योंकि इस वक्त दिल्ली पर रज़िया सुल्तान का राज था, जबकि बलबन तो रावल जैत्रसिंह के देहान्त के बाद दिल्ली के तख्त पर बैठा)

1253 ई.

* रावल जैत्रसिंह का देहान्त

"रावल तेजसिंह"

* 1253 ई. में मेवाड़ के शासक बने

* 1273 ई. में इनका देहान्त हुआ

"रावल समरसिंह"

* 1273 ई. में मेवाड़ के शासक बने

* रावल समरसिंह के 2 पुत्र हुए - रतनसिंह व कुम्भकर्ण

* कुम्भकर्ण नेपाल चले गए | नेपाल का राजवंश यहीं से निकला | नेपाल के शासकों ने "राणा" की उपाधि धारण की |

* 1302 ई. में रावल समरसिंह का देहान्त हुआ व इनके पुत्र रावल रतनसिंह मेवाड़ के शासक बने

सोमवार, 22 मई 2017

मेवाड़ के वास्तविक संस्थापक ------- बप्पा रावल

 
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जन्म - 713-14 ई.
* बप्पा रावल को "कालभोज" के नाम से भी जाना जाता है

* इनके समय चित्तौड़ पर मौर्य शासक मान मोरी का राज था

734 ई. में बप्पा रावल ने 20 वर्ष की आयु में मान मोरी को पराजित कर चित्तौड़ दुर्ग पर अधिकार किया

* वैसे तो गुहिलादित्य/गुहिल को गुहिल वंश का संस्थापक कहते हैं, पर गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक बप्पा रावल को माना जाता है

* बप्पा रावल को हारीत ऋषि के द्वारा महादेव जी के दर्शन होने की बात मशहूर है

* एकलिंग जी का मन्दिर - उदयपुर के उत्तर में कैलाशपुरी में स्थित इस मन्दिर का निर्माण 734 ई. में बप्पा रावल ने करवाया | इसके निकट हारीत ऋषि का आश्रम है |

* आदी वराह मन्दिर - यह मन्दिर बप्पा रावल ने एकलिंग जी के मन्दिर के पीछे बनवाया

  @ 735 ई. में हज्जात ने राजपूताने पर अपनी फौज भेजी | बप्पा रावल ने हज्जात की फौज को हज्जात के मुल्क तक खदेड़ दिया |

@ बप्पा रावल की तकरीबन 100 पत्नियाँ थीं, जिनमें से 35 मुस्लिम शासकों की बेटियाँ थीं, जिन्हें इन शासकों ने बप्पा रावल के भय से उन्हें ब्याह दीं |

  @ 738 ई. - अरब आक्रमणकारियों से युद्ध

ये युद्ध वर्तमान राजस्थान की सीमा के भीतर हुआ

बप्पा रावल, प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम व चालुक्य शासक विक्रमादित्य द्वितीय की सम्मिलित सेना ने अल हकम बिन अलावा, तामीम बिन जैद अल उतबी व जुनैद बिन अब्दुलरहमान अल मुरी की सम्मिलित सेना को पराजित किया

  @बप्पा रावल ने सिंधु के मुहम्मद बिन कासिम को पराजित किया

  @बप्पा रावल ने गज़नी के शासक सलीम को पराजित किया

  @इन्होंने अपनी राजधानी नागदा रखी

  @ कविराज श्यामलदास के शिष्य गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने अजमेर के सोने के सिक्के को बापा रावल का माना है। इसका तोल 115 ग्रेन (65 रत्ती) है। इस सिक्के में सामने की ओर ऊपर के हिस्से में माला के नीचे श्री बोप्प लेख है। बाईं ओर त्रिशूल है और उसकी दाहिनी तरफ वेदी पर शिवलिंग बना है। इसके दाहिनी ओर नंदी शिवलिंग की ओर मुख किए बैठा है। शिवलिंग और नंदी के नीचे दंडवत् करते हुए एक पुरुष की आकृति है। पीछे की तरफ चमर, सूर्य और छत्र के चिह्न हैं। इन सबके नीचे दाहिनी ओर मुख किए एक गौ खड़ी है और उसी के पास दूध पीता हुआ बछड़ा है। ये सब चिह्न बपा रावल की शिवभक्ति और उनके जीवन की कुछ घटनाओं से संबद्ध हैं।

  # 753 ई. में बप्पा रावल ने 39 वर्ष की आयु में सन्यास लिया

इनका समाधि स्थान एकलिंगपुरी से उत्तर में एक मील दूर स्थित है

इस तरह इन्होंने कुल 19 वर्षों तक शासन किया

* शिलालेखों में वर्णन -
  1 कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में बप्पा रावल को विप्रवंशीय बताया गया है
  2आबू के शिलालेख में बप्पा रावल का वर्णन मिलता है
3 कीर्ति स्तम्भ शिलालेख में भी बप्पा रावल का वर्णन मिलता है
4रणकपुर प्रशस्ति में बप्पा रावल व कालभोज को अलग-अलग व्यक्ति बताया गया है | हालांकि आज के इतिहासकार इस बात को नहीं मानते |
  5..कर्नल जेम्स टॉड को 8वीं सदी का शिलालेख मिला, जिसमें मानमोरी (जिसे बप्पा रावल ने पराजित किया) का वर्णन मिलता है | कर्नल जेम्स टॉड ने इस शिलालेख को समुद्र में फेंक दिया |
------------बप्पा रावल का देहान्त नागदा में हुआ, जहाँ इनकी समाधि स्थित है


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मंगलवार, 28 मार्च 2017

8 बातें : जब महाराणा प्रताप का घायल चेतक भी भारी पड़ा मुगलों पर

महाराणा प्रताप मेवाड़ के शक्‍ितशाली हिंदू शासक थे। सोलहवीं शताब्दी के राजपूत शासकों में महाराणा प्रताप ऐसे शासक थे, जो अकबर को लगातार टक्कर देते रहे। हालांकि महाराणा प्रताप जितने बहादुर थे, उससे ज्‍याद निडर उनका चेतक घोड़ा था। यह अरबी मूल का घोड़ा महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय था। हल्दी घाटी-(1576) के प्रसिद्ध युद्ध में चेतक ने वीरता का जो परिचय दिया था, वो इतिहास में अमर है।
1. चेतक घोड़े की सबसे खास बात थी कि, महाराणा प्रताप ने उसके चेहरे पर हाथी का मुखौटा लगा रखा था। ताकि युद्ध मैदान में दुश्‍मनों के हाथियों को कंफ्यूज किया जा सके।

2. युद्ध मैदान में बहुबल और हथियारों की अधिकता के चलते अकबर की सेना महाराणा प्रताप पर हावी होती जा रही थी। लेकिन अंत में बिजली की तरह दौड़ते चेतक घोड़े पर बैठकर महाराणा प्रताप ने दुश्‍मनों का संहार किया।

3. एक बार युद्ध में चेतक उछलकर हाथी के मस्‍तक पर चढ़ गया था। हालांकि हाथी से उतरते समय चेतक का एक पैर हाथी की सूंड में बंधी तलवार से कट गया।

4. अपना एक पैर कटे होने के बावजूद महाराणा को सुरक्षित स्थान पर लाने के लिए चेतक बिना रुके पांच किलोमीटर तक दौड़ा। यहां तक कि उसने रास्ते में पड़ने वाले 100 मीटर के बरसाती नाले को भी एक छलांग में पार कर लिया। जिसे मुगल की सेना पार ना कर सकी।

5. ऐसा माना जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे। मुगलों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी।

6. आपको यह जानकर आश्‍चर्य होगा कि महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था। उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था।

7. हल्दीघाटी के युद्ध में हिंदू शासक महाराणा प्रताप की तरफ से लडने वाले सिर्फ एक मुस्लिम सरदार था -हकीम खां सूरी।

8. महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 शादियां की थीं। कहा जाता है कि उन्होंने ये सभी शादियां राजनैतिक कारणों से की थीं।

यह भी देखे ----

१ महाराणा प्रताप के लिए बहुत ही सुन्दर कुछ पंक्तिया कही गयी है
२-





महाराणा प्रताप के बारे में 16 रोचक तथ्य |

महाराणा प्रताप, ये एक ऐसा नाम है जिसके लेने भर से मुगल सेना के पसीने छूट जाते थे. एक ऐसा राजा जो कभी किसी के आगे नही झुका. जिसकी वीरता की कहानी सदियों के बाद भी लोगों की जुबान पर हैं. वो तो हमारी एकता में कमी रह गई वरना जितने किलों का अकबर था उतना वजन तो प्रयाप के भाले का था. महाराणा प्रताप मेवाड़ के महान हिंदू शासक थे.
1. महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था. प्रताप इनका और राणा उदय सिँह इनके पिता का नाम था.
2. प्रताप का वजन 110 किलो और हाईट 7 फीट 5 इंच थी.
3. प्रताप का भाला 81 किलो का और छाती का कवच का 72 किलो था. उनका भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन कुल मिलाकर 208 किलो था.
4. प्रताप ने राजनैतिक कारणों की वजह से 11 शादियां की थी.
5. महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं.
6. अकबर ने राणा प्रताप को कहा था की अगर तुम हमारे आगे झुकते हो तो आधा भारत आप का रहेगा, लेकिन महाराणा प्रताप ने कहा मर जाऊँगा लेकिन मुगलों के आगे सर नही नीचा करूंगा.
7. प्रताप का घोड़ा, चेतक हवा से बातें करता था. उसने हाथी के सिर पर पैर रख दिया था और घायल प्रताप को लेकर 26 फीट लंबे नाले के ऊपर से कूद गया था.
8. प्रताप का सेनापति सिर कटने के बाद भी कुछ देर तक लड़ता रहा था.
9. प्रताप ने मायरा की गुफा में घास की रोटी खाकर दिन गुजारे थे.
10. नेपाल का राज परिवार भी चित्तौड़ से निकला है दोनों में भाई और खून का रिश्ता हैं.
11. प्रताप के घोड़े चेतक के सिर पर हाथी का मुखौटा लगाया जाता था. ताकि दूसरी सेना के हाथीकंफ्यूज रहें.
12. महाराणा प्रताप हमेशा दो तलवार रखते थे एक अपने लिए और दूसरी निहत्थे दुश्मन के लिए.
13. अकबर ने एक बार कहा था की अगर महाराणा प्रताप और जयमल मेड़तिया मेरे साथ होते तो हम विश्व विजेता बन जाते.
14. आज हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहां की जमीनो में तलवारे पायी जाती हैं.
15. ऐसा माना जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे। मुगलों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी.
16. 30 सालों तक प्रयास के बाद भी अकबर, प्रताप को बंदी न बना सका. 29 जनवरी 1597 को शिकार दुर्घटना में injury की वजह से प्रताप की मृत्यु हो गई.  प्रताप की मौत की खबर सुनकर अकबर भी रो पड़ा था.

हिन्दी कविता : महाराणा प्रताप

गाथा फैली घर-घर है,
आजादी की राह चले तुम,
सुख से मुख को मोड़ चले तुम,
'नहीं रहूं परतंत्र किसी का',
तेरा घोष अति प्रखर है,
राणा तेरा नाम अमर है।

भूखा-प्यासा वन-वन भटका,
खूब सहा विपदा का झटका,
नहीं...कहीं फिर भी जो अटका,
एकलिंग का भक्त प्रखर है,  


भारत राजा, शासक, सेवक, 
अकबर ने छीना सबका हक,
रही कलेजे सबके धक्-धक्
पर तू सच्चा शेर निडर है,
राणा तेरा नाम अमर है।

मानसिंह चढ़कर के आया,
हल्दी घाटी जंग मचाया,
तेरा चेतक पार ले गया,
पीछे छूट गया...लश्कर है,
राणा तेरा नाम अमर है।

वीरों का उत्साह बढ़ाए,
कवि जन-मन के गीत सुनाएं,
नित स्वतंत्रता दीप जलाएं,
शौर्य सूर्य की उज्ज्वलकर है, 
राणा तेरा नाम अमर है।
राणा तेरा नाम अमर है।  

कविता : मेवाड़ का वीर योद्धा महाराणा प्रताप पर पंडित नरेन्द्र मिश्र की कविता की कुछ पंक्तियां इस प्रकार है -

राणा प्रताप इस भरत भूमि के, मुक्ति मंत्र का गायक है।
राणा प्रताप आजादी का, अपराजित काल विधायक है।।

वह अजर अमरता का गौरव, वह मानवता का विजय तूर्य।
आदर्शों के दुर्गम पथ को, आलोकित करता हुआ.सूर्य।।  ..


राणा प्रताप की खुद्दारी, भारत माता की पूंजी है।
ये वो धरती है जहां कभी, चेतक की टापें गूंजी है।।

पत्थर-पत्थर में जागा था, विक्रमी तेज बलिदानी का।
जय एकलिंग का ज्वार जगा, जागा था खड्ग भवानी का।।  

सोमवार, 27 मार्च 2017

उदयपुर............

उदयपुर राजस्थान का एक नगर एवं पर्यटन स्थल है जो अपने इतिहास, संस्कृति एवम् अपने अाकर्षक स्थलों के लिये प्रसिद्ध है। इसे सन् 1559 मे महाराणा उदय सिंह ने स्थापित किया था। अपनी झीलों के कारण यह शहर 'झीलों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। उदयपुर शहर सिसोदिया राजवंश द्वारा ‌शासित मेवाड़ की राजधानी रहा है।




इतिहास .................
उदयपुर बनास नदी पर, नागदा के दक्षिण पश्चिम में उपजाऊ परिपत्र गिर्वा घाटी में महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने 1559 में स्थापित किया था। यह मेवाड़ राज्य की नई राजधानी के रूप में स्थापित किया गया था। इस क्षेत्र ने पहले से ही 12 वीं सदी के माध्यम से 10 वीं में मेवाड़ की राजधानी के रूप में कार्य किया था, जो एक संपन्न व्यापारिक शहर, आयद था। गिर्वा क्षेत्र पहले से ही कमजोर पठार चित्तौड़गढ़ था कि जब भी यह करने के लिए ले जाया गया है जो चित्तौड़ शासकों के लिए अच्छी तरह से जाना जाता है, इस प्रकार था दुश्मन के हमलों के साथ धमकी दी। महाराणा उदय सिंह द्वितीय, तोपखाने युद्ध की 16 वीं सदी के उद्भव के बाद में, एक अधिक सुरक्षित स्थान पर अपनी राजधानी को स्थानांतरित करने के कुंभलगढ़ में अपने निर्वासन के दौरान फैसला किया। आयद इसलिए वह अरावली श्रृंखला की तलहटी में शिकार करते हुए कहा कि वह एक साधु के पास आ खड़ा हुआ है, जहाँ अपनी नई राजधानी शहर है, शुरू करने के लिए पिछोला झील के रिज पूर्व चुना है, बाढ़ की आशंका थी। साधु ने राजा को आशीर्वाद दिया और यह अच्छी तरह से संरक्षित किया जाएगा उसे आश्वस्त मौके पर एक महल का निर्माण करने के लिए उसे निर्देशित। उदय सिंह द्वितीय फलस्वरूप साइट पर एक निवास की स्थापना की। नवंबर 1567 में मुगल बादशाह अकबर ने चित्तौड़ की पूजा किले को घेर लिया।
मुगल साम्राज्य कमजोर के रूप में, सिसोदिया शासकों, अपनी स्वतंत्रता प्राप्त कि और चित्तौड़ को छोड़कर मेवाड़ के सबसे पुनः कब्जा। उदयपुर एक पहाड़ी क्षेत्र है और भारी बख़्तरबंद मुगल घोड़ों के लिए अनुपयुक्त होने के नाते 1818 में ब्रिटिश भारत के एक राजसी राज्य बन गया है जो राज्य की राजधानी बना रहा, उदयपुर ज्यादा दबाव के बावजूद मुगल प्रभाव से सुरक्षित बने रहे। वर्तमान में, अरविंद सिंह मेवाड़ मेवाड़ राजवंश के 76 वें संरक्षक है।

मेवाड

8वीं से 16वीं सदी तक बप्पा रावल के वंशजो ने अजेय शासन किया और तभी से यह राज्य मेवाड के नाम से जाना जाता है। बुद्धि तथा सुन्दरता के लिये विख्यात महारानी पद्मिनी भी यहीं की थी। कहा जाता है कि उसकी एक झलक पाने के लिये सल्तनत दिल्ली के सुल्तान अल्लाउदीन खिलजी ने इस किले पर आक्रमण किया। रानी ने अपने चेहरे की परछाई को लोटस कुण्ड में दिखाया। इसके बाद उसकी इच्छा रानी को ले जाने की हुयी। पर यह संभव न हो सका। क्योंकि महारानी सभी रानियों और सभी महिलाओं सहित एक एक कर जलती हुयी आग जिसे विख्यात जौहर के नाम से जानते है, में कूद गयी और अल्लाउदीन खिलजी की इच्छा पूरी न हो सकी।
मुख्य शासकों में बप्पा रावल (1433-68), राणा सांगा (1509-27) जिनके शरीर पर 80 घाव होने, एक टांग न (अपंग) होने, एक हाथ न होने के बावजूद भी शासन सामान्य रूप से चलाते थे बल्किबाबर के खिलाफ लडाई में भी भाग लिया। और सबसे प्रमुख महाराणा प्रताप (1572-92) हुये जिन्होने अकबर की अधीनता नहीं स्वीकार की और राजधाने के बिना राज्य किया।

दर्शनीय स्थल (शहर में)

पिछोला झील
महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने इस शहर की खोज के बाद इस झील का विस्तार कराया था। झील में दो द्वीप हैं और दोनों पर महल बने हुए हैं। एक है जग निवास, जो अब लेक पैलेस होटल बन चुका है और दूसरा है जग मंदिर। दोनों ही महल राजस्थानी शिल्पकला के बेहतरीन उदाहरण हैं, बोट द्वारा जाकर इन्हें देखा जा सकता है।
जग निवास द्वीप, उदयपुर
पिछोला झील पर बने द्वीप पैलेस में से एक यह महल, जो अब एक सुविधाजनक होटल का रूप ले चुका है। कोर्टयार्ड, कमल के तालाब और आम के पेड़ों की छाँव में बना स्विमिंग-पूल मौज-मस्ती करने वालों के लिए एक आदर्श स्थान है। आप यहाँ आएं और यहाँ रहने तथा खाने का आनंद लें, किंतु आप इसके भीतरी हिस्सों में नहीं जा सकते।
जग मंदिर, उदयपुर
पिछोला झील पर बना एक अन्य द्वीप पैलेस। यह महल महाराजा करण सिंह द्वारा बनवाया गया था, किंतु महाराजा जगत सिंह ने इसका विस्तार कराया। महल से बहुत शानदार दृश्य दिखाई देते हैं, गोल्डन महल की सुंदरता दुर्लभ और भव्य है।
सिटी पैलेस, उदयपुर
प्रसिद्ध और शानदार सिटी पैलेस उदयपुर के जीवन का अभिन्न अंग है। यह राजस्थान का सबसे बड़ा महल है। इस महल का निर्माण शहर के संस्थापक महाराणा उदय सिंह-द्वितीय ने करवाया था। उनके बाद आने वाले राजाओं ने इसमें विस्तार कार्य किए। तो भी इसके निर्माण में आश्चर्यजनक समानताएं हैं। महल में जाने के लिए उत्तरी ओर से बड़ीपोल से और त्रिपोलिया द्वार से प्रवेश किया जा सकता है।
नगर महल (सिटी पैलेस) का सायंकाल का दृश्य
शिल्पग्राम, उदयपुर
यह एक शिल्पग्राम है जहाँ गोवा, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के पारंपरिक घरों को दिखाया गया है। यहाँ इन राज्यों के शास्त्रीय संगीत और नृत्य भी प्रदर्शित किए जाते हैं।
सज्‍जनगढ़ (मानसून पैलेस)
उदयपुर शहर के दक्षिण में अरावली पर्वतमाला के एक पहाढ़ की चोटी पर इस महल का निर्माण महाराजा सज्जन सिंह ने करवाया था। यहाँ गर्मियों में भी अच्‍छी ठंडी हवा चलती है। सज्‍जनगढ़ से उदयपुर शहर और इसकी झीलों का सुंदर नज़ारा दिखता है। पहाड़ की तलहटी में अभयारण्‍य है। सायंकाल में यह महल रोशनी से जगमगा उठता है, जो देखने में बहुत सुंदर दिखाई पड़ता है।
फतेह सागर 
महाराणा जय सिंह द्वारा निर्मित यह झील बाढ़ के कारण नष्ट हो गई थी, बाद में महाराणा फतेह सिंह ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। झील के बीचों-बीच एक बागीचा , नेहरु गार्डन, स्थित है। आप बोट अथवा आटो द्वारा झील तक पहुंच सकते हैं।
मोती मगरी
यहाँ प्रसिद्ध राजपूत राजा महाराणा प्रताप की मूर्ति है। मोती मगरी फतेहसागर के पास की पहाड़ी पर स्थित है। मूर्ति तक जाने वाले रास्तों के आसपास सुंदर बगीचे हैं, विशेषकर जापानी रॉक गार्डन दर्शनीय हैं।
सहेलियों की बाड़ी
सहेलियों की बाड़ी / दासियों के सम्मान में बना बाग एक सजा-धजा बाग है। इसमें, कमल के तालाब, फव्वारे, संगमरमर के हाथी और कियोस्क बने हुए हैं।

दर्शनीय स्थल (आसपास)

  • नाथद्वारा ४८ किलोमीटर दूर है उदयपुर से
  • कुंभलगढ ८० किलोमीटर
  • कांकरोली ७० किलोमीटर
  • ऋषभदेव यह केसरिया जी के नाम से भी प्रसिद्ध है।
  • एकलिगजी१३ किलोमीटर
  • हल्दीघाटी २६ मील की दूरी पर स्थि
  • जयसमन्द झील
  • रणकपुर
  • चित्तौडगढ
  • जगत

यातायात सुविधाएं

उदयपुर के सार्वजनिक यातायात के साधन मुख्यतः बस, ऑटोरिक्शा और रेल सेवा हैं।
हवाई मार्ग
सबसे नजदीकी हवाई अड्डा उदयपुर हवाई अड्डा है। यह हवाई अड्डा डबौक में है। जयपुर, जोधपुर औरंगाबाद, दिल्लीक तथा मुंबई से यहाँ नियमित उड़ाने उपलब्धत हैं।
रेल मार्ग
यहाँउदयपुर सिटी रेलवे स्टेशन नामक रेलवे स्टेिशन है। यह स्टे‍शन देश के अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग
यह शहर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्याद 8 पर स्थित है। यह सड़क मार्ग से जयपुर से 9 घण्टे, दिल्ली से 14 घण्टे तथा मुंबई से 17 घण्टे की दूरी पर स्थित है।

इतिहास --मेवाड़ के शासक अल्लट से रावल समरसिंह

* मेवाड़ का इतिहास * भाग - 2 बप्पा रावल से रावल रतनसिंह के बीच में 32 शासक हुए, जिनमें से कुछ इस तरह हैं - "अल्लट" * 951 ई...